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Tuesday, August 27, 2019

रिसर्च: बहरेपन की तरफ ले जा रहा गाड़ियों का शोर

जीशान रायि‍नी, लखनऊ शहर में गाड़ियों का शोर लोगों की सुनने की क्षमता घटा रहा है। केजीएमयू के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के असोसिएट प्रफेसर मनीष मनार के शोध में इसका खुलासा हुआ है। मनीष के मुताबिक, सबसे ज्यादा शोर में टेंपो चालक रहते हैं। इसी कारण शोध के लिए उन्होंने 150 टेंपो चालकों को चुना। ऑडियोमेट्री टेस्ट में 50% टेंपो चालकों की सुनने की क्षमता कम मिली। शोध में शहर के अलग-अलग इलाकों के टेंपो चालक शामिल किए गए। डॉ. मनीष ने बताया कि दिन में हमारे काम में अस्थायी शोर उत्पन्न हो जाता है। इससे सटीक आकलन नहीं हो पाता। इसके उलट सुबह अस्थायी शोर नहीं होता। इसी कारण सभी चालकों को सुबह जांच के लिए बुलाया गया। ऑडियोमेट्री टेस्ट में उन्हें 1000 से 4000 फ्रिक्वेंसी तक की ध्वनियां सुनाई गईं। इसी आधार पर उनकी सुनने की क्षमता का आकलन किया गया। उनका यह शोध इंटरनैशनल जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस ऐंड करंट रिसर्च में भी प्रकाशित हुआ है। एक सवाल ने किया प्रेरित डॉ. मनीष के मुताबिक, कुछ दिन पहले उनके परिचित ने पूछा था कि क्या बहुत शोर वाली जगह काम करने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। इसी सवाल ने शोध के लिए प्रेरित किया। अब वह अगले चरण में पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि शोर के कारण सामान्य लोग कितने दिनों में कान की बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। 49.3% ड्राइवरों को सुनने में दिक्कत 25 डिसेबल तक की आवाज सुन लेते हैं सामान्य श्रवण क्षमता वाले 77.6% को 40 डिसेबल तक की आवाज की जरूरत पड़ी सुनने के लिए 21.1% ड्राइवर 60 डिसेबल तक की आवाज पर सुन पाए 1.3% ड्राइवर 80 डिसेबल से अधिक की ध्वनि पर सुन सके


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